लेखनी प्रतियोगिता -27-Jul-2022 भीगी सड़क
कविता : भीगी सड़क
वो मंजर देखकर
सड़क भी भीग गई
जब सरे-आम एक
अबोध बालिका
हैवानियत का शिकार हुई ।
कितनी असहाय
लग रही थी वो सड़क
खून के आंसू रो रही थी वो ।
बहुत मिन्नतें की थी उसने
मगर दरिंदे तो पत्थर के थे
और सड़क
उसका दिल कितना रोया था ।
कैसे कैसे नजारे
देखने पड़ते हैं उसे रोज
कभी इंसानियत का कत्ल
तो कभी विश्वास का चीरहरण
कभी भावनाओं का बलात्कार
कभी संवेदनाओं का खून
कभी मासूमियत से छल
कभी बचपन से खिलवाड़
कभी इज्जत का फालूदा
कभी रिश्तों का काला सच
कभी झूठ , फरेब का प्रपंच
कभी धूर्तता, मक्कारी का प्रदर्शन
कभी बेईमानी का नंगा नाच ।
इतना सब कुछ देखने के बाद
सड़क की आंख , दिल, गला ,
सब भीग जाते है ।
जुबान तालू से चिपक जाती है
और होंठ भय से थरथरा उठते हैं ।
माना कि वह पत्थर की बनी है
स्याह तारकोल से सनी है
पर इंसान के दिल की तरह
एकदम काली नहीं है
वह पत्थर दिल भी नहीं है ।
और तो और विश्वास घाती
तो बिल्कुल नहीं है ।
दुष्कर्म पीड़िता की तरह
वह चौबीसों घंटे
गम के आंसुओं से भीगी रहती है
अपने आप में गुमसुम
सिमटी हुई, खोई खोई रहती है ।
हालांकि रिमझिम फुहारें
उसके दर्द को कम करती हैं
मगर उस दर्द की शाम कहां
वह तो रोज मिलता है
दिन दुगना रात चौगुना
और सड़क ?
उसकी नियति है
आंसुओं में भीगना
धूप में तपना
शीत से कांपना
हर वक्त , हर दिन ।
श्री हरि
Aniya Rahman
27-Jul-2022 10:32 PM
Nyc
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Ilyana
27-Jul-2022 05:19 PM
Bahut sundar
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Seema Priyadarshini sahay
27-Jul-2022 04:52 PM
Very nice
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